उत्तराखंड

पंचायतों में मतदाता विवाद: शहरी मतदाता पंचायत सूची में कैसे पहुंचे, बड़ा सवाल

देहरादून। उत्तराखंड में पंचायत चुनाव को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। हाईकोर्ट ने ऐसे प्रत्याशियों के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी है जिनके नाम स्थानीय नगर निकाय और ग्राम पंचायत दोनों की मतदाता सूचियों में दर्ज हैं। अदालत ने स्पष्ट किया है कि दो अलग-अलग मतदाता सूचियों में नाम दर्ज कराकर चुनाव लड़ना उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम, 2016 का उल्लंघन है।

मामले की जड़ अधिनियम की धारा-9 की उपधारा-6 और 7 में है, जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति एक से अधिक क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाता नहीं हो सकता। यदि किसी का नाम पहले से किसी नगर निकाय की सूची में है तो पंचायत सूची में नाम जोड़ने से पहले पूर्व सूची से नाम हटाना जरूरी है। इसके बावजूद कई शहरी मतदाताओं को ग्राम पंचायत की सूची में भी शामिल कर लिया गया।

इस बीच राज्य निर्वाचन आयोग ने धारा 9(13), 54(3) और 91(3) का हवाला देते हुए एक सर्कुलर जारी किया था, जिसमें कहा गया कि ग्राम पंचायत की सूची में नाम होने मात्र से व्यक्ति मतदान और नामांकन के योग्य होगा। इसी सर्कुलर के कारण असमंजस की स्थिति पैदा हुई, जिस पर अब हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है।

हालांकि, कोर्ट ने चुनाव प्रक्रिया पर कोई रोक नहीं लगाई है। नामांकन और नाम वापसी की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, जिससे यह सवाल उठ रहा है कि अब उन प्रत्याशियों का क्या होगा जिनके नाम दो सूचियों में दर्ज हैं। निर्वाचन आयोग के सचिव राहुल गोयल ने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद ही इस पर कोई अंतिम निर्णय लिया जाएगा।

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