उत्तराखंड

सावन में कनखल के कण-कण में भगवान, गंगा, शिव, सती और दक्षेश्वर के होते हैं दर्शन

हरिद्वार | सावन मास के पावन अवसर पर हरिद्वार स्थित कनखल आध्यात्मिक ऊर्जा से जागृत हो उठता है। यह वही पुण्य भूमि है जहां ब्रह्मा, विष्णु और महेश के चरण पड़े, जहां भगवान शिव ने सती से विवाह किया और जहां दक्ष यज्ञ हुआ। यहीं से सती की दग्ध देह लेकर भगवान शिव ने तांडव किया, जिससे 52 शक्ति पीठों की रचना हुई।

प्रमुख स्थल और मान्यताएं:

  • दक्षेश्वर मंदिर में भगवान शिव हर सावन अपने वचन के अनुसार विराजमान होते हैं।
  • मायादेवी मंदिर को आदि शक्ति पीठ माना जाता है।
  • शीतला मंदिर, सतीकुंड, चंडी देवी, मनसा देवी आदि शक्ति के पांच ज्योतिर्थल बनाते हैं।
  • दक्षेश्वर, बिल्वकेश्वर, नीलेश्वर, वीरभद्र और नीलकंठ शिव के पांच ज्योतिर्लिंग स्थल हैं, जिनका केंद्र कैलाश (आकाश) में माना जाता है।

पुराणों के अनुसार:

स्कंद पुराण के केदारखंड में वर्णित है कि श्रावण मास में हिमालय और शिवालिक क्षेत्र शिव, शक्ति और गंगा की कृपा से जागृत हो उठता है। कनखल को शिव की ससुराल और सती का मायका कहा जाता है।

सावन और कांवड़ यात्रा:

हरिद्वार से निकलने वाली श्रावणी कांवड़ यात्रा सबसे बड़ी मानी जाती है। शिवभक्त इन पवित्र स्थलों से जल भरकर अपने-अपने शिवालयों में अर्पित करते हैं। ऐसी मान्यता है कि दसों ज्योति स्थलों की कृपा से ही उनकी यात्रा सकुशल पूर्ण होती है।

कनखल न केवल धार्मिक इतिहास से जुड़ा है, बल्कि यह शिव और शक्ति के सनातन मिलन की साक्षी पुण्यभूमि भी है, जहां सावन में हर कण में ईश्वरत्व की अनुभूति होती है।

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